real ghost story in hindi
अम्बोली वाला भूत
ये कहानी अम्बोली के भूत की है. जिसके बारे मैं आज मैं आपको बताने जा रहा हु. हमारे गाँव से लगभग आधा किलोमीटर पर एक बहुत बड़ा बगीचा है , जिसको हमारे गाँव वाले अम्बोली नाम से पुकारते हैं. यह लगभग 10-15 एकड़ में फैला हुआ है. इस बगीचे में आम और महुआ के पेड़ों की अधिकता है. बहुत सारे पेड़ों के गिर जाने के कारण , आज यह अम्बोली अपना पहले वाला अस्तित्व खो चुकी है पर आज भी कमजोर दिलवाले व्यक्ति दोपहर या दिन डूबने के बाद इस अम्बोली की ओर जाने की बात तो दूर इस का नाम उनके जेहन में आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आखिर क्यों. उस अम्बोली में ऐसा क्या है.
तो आज से 31-32 साल पहले यह अम्बोली बहुत ही घनी और भयानक हुआ करती थी. दोपहर के समय भी इस अम्बोली में अंधेरा और भूतों का खौफ छाया रहता था. लोग आम तोड़ने के लिए बहुत से लोग मिलकर ही इस अम्बोली में जाया करते थे. कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि रात को भूत प्रेतों को यहाँ कबड्डी खेलते हुए देखा जा सकता था. अगर कोई व्यक्ति भूला भटककर इसके आस पास भी पहुँच गया तो ये भूत उसे भी पकड़कर अपने साथ खेलने के लिए मजबूर करते थे और ना करने पर जमकर धुनाई भी कर देते थे.
उस बगीचे में मेरे भी बहुत सारे पेड़ हुआ करते थे. एक बार हमारे दादा जी ने आम के मौसम में आमों की रखवारी का जिम्मा गाँव के ही एक व्यक्ति को दे दी थी. लेकिन कहीं से दादा जी को पता चला कि वह रात को एक दो लोगों के साथ मिलकर आम तोड़ लेता है. एक दिन हमारे दादा जी ने छिपकर सही और गलत का पता लगने की सोची. रात को खा पीकर एक लाठी और बैटरी लेकर हमारे दादा जी उस भयानक और भूतों के साम्राज्य वाले बारी में पहुँचे.
उनको कोने वाला पेड़ के नीचे एक व्यक्ति दिखाई दिया. दादा जी को लगा कि यही वह व्यक्ति है जो आम तोड़ लेता है. दादा जी ने आव देखा न ताव, उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए लगे दौड़ने. वह व्यक्ति लगा भागने. दादा जी उसे दौड़ा रहे थे और चिल्ला रहे थे कि आज तुमको पकड़कर ही रहुँगा. भाग देखता हूँ कि कितना भागता है. अचानक वह व्यक्ति उस बारी में ही स्थित एक के पेड़ के पास पहुँचकर भयंकर और विकराल रूप में आ गया.
उसके अगल बगल में आग उठने लगी. अब तो हमारे दादा जी बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया. उनका शरीर काँपने लगा, रोएँ खड़े हो गए और वे एक दम अवाक हो गए. अब उनकी हिम्मत जवाब देते जा रही थी और उनके पैर ना आगे जा रहे थे ना पीछे. लगभग दो तीन मिनट तक बेसुध खड़ा रहने के बाद थोड़ी सी हिम्मत करके हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे. जब वे घर पहुँचे तो वे बहुत ही सहमे हुए थे. तीन-चार दिन बिस्तर पर पड़े रहे तब जाकर उनको आराम हुआ. उस साल हमारे दादा जी ने फिर अकेले उस अम्बोली की ओर न जाने की सोची. ये सच्ची कहानी किसी लगी हमे जरूर बताये.
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