Ghost ki kahani | Ghost in hindi
जब देखीं एक आत्मा, ghost ki kahani, दोस्तों मेरा नाम दिनेश यादव है और मैं दिल्ली का रहने वाला हु. ये बात मेरे एक दोस्त से सम्बन्धितं है. मेरा दोस्त आदेश त्यागी है अपने घर पर लौट रहे थे. रात के उन्हें लगभग साढ़े आठ बज चुके थे. कुछ छोटे स्टेशनों पर देर रात को सवारी मिलने में दिक्कत होती है. फिर आदेश का घर शहर के बाहर पड़ता था
जब देखीं एक आत्मा – ghost ki kahani
इसलिए वे रेलवे लाइन के किनारे-किनारे चलने लगे. जैसे ही वे प्लेटफार्म छोड़कर पटरियों के किनारे आए उन्होंने एक युवती को साथ चलते देखा. उन्होंने पूछा तो उसने बताया कि वह हास्टल से घर आ रही थी ट्रेन लेट होने के कारण परेशानी में पड़ गई. इत्तेफाक से उसका घर उस गुमटी के पास ही था जहां से आदेश के घर का रास्ता निकलता था. उसने कहा कि ठीक है उसे घर पहुंचा कर ही वह आगे बढ़ेगा. उसने बताया कि वह इंटर में पढ़ती है और उसके पिता का नाम कर्ण सिंह है. उसने पूछा कि क्या आप चैस खेलते हैं. आदेश ने कहा-हां, खेलता हूं. उसने बताया कि वह टूर्नामेंट में उसे खेलते हुए देख चुकी है. रेल लाइन के एक तरफ खेत थे. दूसरी तरफ छिटपुट आबादी. कुछ घर अभी बन ही रहे थे.
कुछ घरों से रौशनी आ रही थी. उसके साथ बात करते हुए कब हम रेल फाटक के पास पहुंच गए पता ही नहीं चला. उसने इशारे से आदेश को अपना घर दिखाते हुए कहा कि अब वह चली जायेगी. आदेश ने कहा कि उसे घर तक पहुंचा कर आगे बढ़ेगा. but उसने कहा अब कोई परेशानी नहीं. अंततः आदेश ने कहा कि वह घर पहुंचने के बाद आवाज़ देगी तभी वह आगे बढ़ेगा. बहरहाल उसने अपने दरवाजे पर पहुंचने के बाद आवाज़ दी.
वह अपने रास्ते चल पड़ा. दो चार दिन बाद आदेश शहर की ओर निकला तो उसके घर के पास से गुजरते हुए उसे लड़की की याद आई. उसने पास के एक दुकानदार से पूछा कि कर्ण सिंह जी का घर कौन सा है. उसने एक घर की ओर इशारा करते हुए बताया कि गेट के पास जो टहल रहे हैं वही कर्ण सिंह हैं. आदेश उनके पास गया और कहा नमस्ते अंकल. वे आदेश को पहचानने की कोशिश करने लगे. आदेश ने कहा-अंकल तीन चार दिन पहले मैं रात को स्टेशन से रेलवे लाइन होकर आ रहा था तो आपकी बेटी दिया मेरे साथ आई थी.
अब वह कैसी है. कर्ण सिंह आदेश की बातें खामोशी से सुनते रहे फिर उसे अंदर आने का इशारा किया. हम ड्राइंग रूम में बैठे ही थे कि एक लड़की ट्रे में बिस्किट और पानी रख गई. कर्ण सिंह ने बताया कि वह उनकी छोटी बेटी आशा है. आदेश ने पूछा-दिया कहां है. इस पर कर्ण सिंह ने दीवार की ओर इशारा किया. वहां दिया की तस्वीर टंगी थी पर माला पहनाया हुआ था. मैं चौंका. कर्ण सिंह ने बतलाया आज से तीन महीने पहले की बात है. दिया ट्रेन से उतरकर रेलवे लाइन से होते हुए पैदल आ रही थी.
पीछे से दो भैंसे दौड़ती हुई आईं कुछ लोगों ने शोर मचाया तो दिया ने पीछे मुड़कर देखा. उनसे बचने के लिए वह रेलवे लाइन पर दौड़ गई. उसी वक्त एक ट्रेन आ रही थी जिससे वह कटकर मर गई. यह कहते-कहते उनकी आंखें डबडबा गईं. फिर थोड़ा संयत होकर पूछा-दिया बहुत हा हंसमुख लड़की थी. हमारे घर की रौनक थी. पढ़ने में बहुत तेज़ थी.
अच्छा बताओ वह तुमसे मिली तो उदास नहीं लग रही थी न…आदेश ने कहा कि वह सामान्य छात्रा की तरह बात कर रही थी. कहीं से ऐसा नहीं लगा कि…आदेश धीरे से उठा और बोला-अच्छा अंकल चलता हूं. कर्ण सिंह ने कहा-ठीक है बेटे आते रहना. आदेश भावुकता में बहता हुआ बाहर निकला. उसकी आंखों के सामने दिया का चेहरा नाच रहा था. जीवन में बहुत सी घटनाये ऐसी भी होती है जिन पर विश्वाश नहीं होता है, but सच क्या है, इसके बारे में बहुत से लोग आज भी जानना चाहते है
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