king story in hindi
अपने मन के राजा की कहानी
एक समय की बात है जब पाटलिपुत्र के राजा हरिश्चंद्र जंगल मैं अपने कुछ सेनिको के साथ शिकार करने गए हुए थे. बाद मैं वो अपने सेनिको से बिछड़ गए थे. वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे. तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा. वह अपनी धुन में मस्त था. उसने राजा हरिश्चंद्र को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा.
हरिश्चंद्र को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ. उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, तुम कौन हो. लकड़हारे ने कहा, मैं अपने मन का राजा हूं. हरिश्चंद्र ने पूछा, अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी. कितना कमाते हो. लकड़हारा बोला, मैं 7 स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं. हरिश्चंद्र ने पूछा, तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो. लकड़हारे ने उत्तर दिया, मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं.
वह हैं मेरे माता पिता. उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा. दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं ,वह हैं मेरे बालक. मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं. तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं. भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है ,सुख दुख का साथी होता है. चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं. पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं. छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है.
उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है. और सातवीं मुद्रा मैं अपने द्वार पर आने वाले भिक्षुक के लिए रखता हु, क्योकि वो हमे सदा ही सुखी रहने का आशीर्वाद देके जाते है. राजा हरिश्चंद्र सोचने लगे, मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर में आनंद से वंचित हूं. लकड़हारा जाने लगा तो बोला, राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा हरिश्चंद्र हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार. हरिश्चंद्र दंग रह गए. इस तरह से आज राजा ने एक गरीब आदमी को भी एक राजा के भेष मैं देख ही लिया था.
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