झूटी शान की कहानी, good story in hindi

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झूटी शान की कहानी

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आज मैं आप लोगो को गांव मैं बने एक बहुत ही पुराने किले की कहानी बताने जा रहा हु. मेरा नाम सुरेश सिंह है और मैं एक गांव का रहने वाला हु. कहानी कुछ इस प्रकार है. किले के एक कोने के साथ बाहर की ओर एक ऊंचा विशाल पॉपुलर का पेड था. किले में उस राज्य की सेना की एक टुकडी तैनात थी. पॉपुलर के पेड पर एक कौवा रहता था. कौवा पेड पर बैठा झील को निहारा करता. उसे हंसों का तैरना व उडना बहुत अच्छा लगता था, . वह सोचा करता कि कितना शानदार पक्षी हैं हंस. उसकी बडी इच्छा होती किसी हंस से उसकी दोस्ती हो जाए.

एक दिन कौवा पानी पीने के बहाने झील के किनारे उगी एक झाडी पर उतरा. हंस तैरता हुआ झाडी के निकट आया. कौवा ने बात करने का बहाना ढूंढा हंस जी, आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूं. बडी प्यास लगी हैं. हंस ने चौंककर उसे देखा और बोला मित्र, पानी प्रकॄति द्वारा सबको दिया गया वरदान हैं. कौवा ने पानी पीया. फिर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई हो. हंस ने पूछा मित्र, क्या प्यास नहीं बुझी. कौवा ने कहा हे हंस, पानी की प्यास तो बुझ गई पर आपकी बतो से मुझे ऐसा लगा कि आप नीति व ज्ञान के सागर हैं. हंस मुस्कुराया मित्र, आप कभी भी यहां आ सकते हैं. हम बातें करेंगे. इस प्रकार मैं जो जानता हूं, वह आपका हो जाएगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा. इसके पश्चात हंस व कौवा रोज मिलने लगे. एक दिन हंस ने कौवा को बता दिया कि वह वास्तव में हंसों का राजा हंसराज हैं. अपना असली परिचय देने के बाद.

हंस अपने मित्र को निमन्त्रण देकर अपने घर ले गया. शाही ठाठ थे. खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन परोसे गए और जाने क्या क्या दुर्लभ खाद्य थे, कौवा को पता ही नहीं लगा. बाद में सौंफ इलाइची की जगह मोती पेश किए गए. कौवा दंग रह गया. अब हंसराज कौवा को महल में ले जाकर खिलाने पिलाने लगा. रोज दावत उडती. उसे डर लगने लगा कि किसी दिन साधारण कौवा समझकर हंसराज दोस्ती न तोड ले. इसलिए स्वयं को कंसराज की बराबरी का बनाए रखने के लिए उसने झूठमूठ कह दिया कि वह भी कौवाओं का राजा कौवाक राज हैं. झूठ कहने के बाद कौवा को लगा कि उसका भी फर्ज बनता हैं कि हंसराज को अपने घर बुलाए.

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एक दिन कौवा ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग में एक युक्ति आई. उसने दुर्ग की बातों को खूब ध्यान से समझा. सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए. फिर वह चला हंस के पास. जब वह झील पर पहुंचा, तब हंसराज कुछ हंसनियों के साथ जल में तैर रहा था. कौवा को देखते ही हंस बोला मित्र, आप इस समय. कौवा ने उत्तर दिया हां मित्र, मैं आपको आज अपना घर दिखाने व अपना मेहमान बनाने के लिए ले जाने आया हूं. मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं. मुझे भी सेवा का मौका दो. हंस ने टालना चाहा मित्र, इतनी जल्दी क्या हैं. फिर कभी चलेंगे. कौवा ने कहा आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा. हंसराज को कौवा के साथ जाना ही पडा. पहाड की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर कौवा उडते उडते बोला वह मेरा किला हैं. हंस बडा प्रभावित हुआ. वे दोनों जब कौवा के आवास वाले पेड पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरु होने वाली थी.

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दो सैनिक बुर्ज पर बिगुल बजाने लगे. कौवा दुर्ग के सैनिकों के कार्यक्रम को याद कर चुका था इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था.कौवा बोला देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं. उसके बाद मेरी सेना परेड और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी. नित्य की तरह परेड हुई और झंडे को सलामी दी गयी. हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा हैं. अतः हंस ने गदगद होकर कहा धन्य हो मित्र. आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो.

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कौवा ने हंसराज पर रौब डाला मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया हैं कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड निकले. कौवा को पता था कि सैनिकों का यह रोज का काम हैं. दैनिक नियम हैं. हंस को कौवा ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए. उनको वह पहले ही जमा कर चुका था. भोजन का महत्व नहीं रह गया. सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था. हंसराज के दिल में कौवा मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था. उधर सैनिक टुकडी को वहां से कूच करने के आदेश मिल चुके थे.

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दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं. कौवा हडबडाकर बोला किसी ने उन्हें गलत आदेश दिया होगा. मैं अभी रोकता हूं उन्हें. ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा. सैनिकों ने कौवा का आना सुना व अपशकुन समझकर जाना स्थगित कर दिया. दूसरे दिन फिर वही हुआ. सैनिक जाने लगे तो कौवा आया. सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस कौवा को तीर मारने का आदेश दिया.

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एक सैनिक ने तीर छोडा. तीर कौवा की बगल में बैठे हंस को लगा. वह तीर खाकर नीचे गिरा व फडफडाकर मर गया. कौवा उसकी लाश के पास शोकाकुल हो विलाप करने लगा हाय, मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र खो दिया. धिक्कार हैं मुझे. कौवा को आसपास की खबर से बेसुध होकर रोते देखकर एक सियार उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया. दोस्तों हमे कभी भी झूटी शान मैं नहीं पड़ना चाहिए. क्योकि कभी कभी झूटी शान खुद पर भरी पड़ जाती है.

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