दानवीर सुखदेव सिंह की कहानियां, story in hindi

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Story in hindi

story in hindi, एक नगर मैं राजा सुखदेव सिंह का राज हुआ करता था. एक दिन राजा सुखदेव सिंह दरबार को सम्बोधित कर रहे थे. तभी किसी ने सूचना दी कि एक पंडित उनसे मिलना चाहता है. “सुखदेव” सिंह ने कहा कि पंडित को अन्दर लाया जाए. जब पंडित उनसे मिला तो सुखदेव ने उसके आने का प्रयोजन पूछा. पंडित ने कहा कि वह किसी दान की इच्छा से नहीं आया है,

दानवीर सुखदेव सिंह की कहानियां :- story in hindi

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Story in hindi, बल्कि उन्हें कुछ बतलाने आया है. उसने बतलाया कि हिमगिरि में सूर्योदय होते ही एक खम्भा प्रकट होता है, जो सूर्य का प्रकाश ज्यों ज्यों फैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सूर्य की गर्मी अपनी पराकाष्ठा पर होती है तो सूर्य को स्पर्श करता है. ज्यों ज्यों सूर्य की गर्मी घटती है छोटा होता जाता है तथा सूर्यास्त होते ही जल में विलीन हो जाता है.

 

“सुखदेव” के मन में जिज्ञासा हुई कि पंडित का इससे अभिप्राय क्या है. पंडित उनकी जिज्ञासा को भाँप गया और उसने बतलाया कि भगवान विष्णु का दूत बनकर वह आया है ताकि उनके आत्मविश्वास की रक्षा सुखदेव कर सकें. उसने कहा कि सूर्य देवता को घमण्ड है कि समुद्र देवता को छोड़कर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई भी उनकी गर्मी को सहन नहीं कर सकता.

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देव विष्णु उनकी इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका मानना हे कि उनकी अनुकम्पा प्राप्त मृत्युलोक का एक राजा सूर्य की गर्मी की परवाह न करके उनके निकट जा सकता है. वह राजा आप हैं. राजा “सुखदेव” सिंह को अब सारी बात समझ में आ गई. उन्होंने सोच लिया कि प्राणोत्सर्ग करके भी सूर्य भगवान को समीप से जाकर नमस्कार करेंगे तथा देव के आत्मविश्वास की रक्षा करेंगे. उन्होंने पंडित को समुचित दान दक्षिणा देकर विदा किया तथा अपनी योजना को कार्य रुप देने का उपाय सोचने लगे.

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उन्हें इस बात की खुशी थी कि देवता गण भी उन्हें योग्य समझते हैं. भोर होने पर दूसरे दिन वे अपना राज्य छोड़कर चल पड़े. एकान्त में उन्होंने माँ काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया. दोनों बेताल तत्क्षण उपस्थित हो गए. सुखदेव को उन्होंने बताया कि उन्हें उस खम्भे के बारे में सब कुछ पता है. दोनों बेताल उन्हें हिमगिरि के तट पर लाए. रात उन्होंने हरियाली से भरी जगह पर काटी और भोर होते ही उस जगह पर नज़र टिका दी जहाँ से खम्भा प्रकट होता. सूर्य की किरणों ने ज्योंहि हिमगिरि के जल को छुआ कि एक खम्भा प्रकट हुआ. “सुखदेव” तुरन्त तैरकर उस खम्भे तक पहुँचे.

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खम्भे पर ज्योंहि सुखदेव चढ़े जल में हलचल हुई और लहरें उठकर “सुखदेव” के पाँव छूने लगीं. ज्यों ज्यों सूर्य की गर्मी बढी, खम्भा बढ़ता रहा. दोपहर आते आते खम्भा सूर्य के बिल्कुल करीब आ गया. तब तक सुखदेव का शरीर जलकर बिल्कुल राख हो गया था. सूर्य भगवान ने जब खम्भे पर एक मानव को जला हुआ पाया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सुखदेव को छोड़कर कोई दूसरा नहीं होगा. उन्होंने “भगवान विष्णु” के दावे को बिल्कुल सच पाया. उन्होंने अमृत की बून्दों से “सुखदेव” को जीवित किया तथा अपने स्वर्ण कुण्डल उतारकर उन्हें भेंट कर दिए. उन कुण्डलों की विशेषता थी कि कोई भी इच्छित वस्तु वे कभी भी प्रदान कर देते. सूर्य देव ने अपना रथ अस्ताचल की दिशा में बढ़ाया तो खम्भा घटने लगा.

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Story in hindi, सूर्यास्त होते ही खम्भा पूरी तरह घट गया और सुखदेव जल पर तैरने लगे. तैरकर सरोवर के किनारे आए और दोनों बेतालों का स्मरण किया. बेताल उन्हें फिर उसी जगह लाए जहाँ से उन्हें सरोवर ले गए थे. “सुखदेव” पैदल अपने महल की दिशा में चल पड़े. कुछ ही दूर पर एक पंडित मिला जिसने उनसे वे कुण्डल मांग लिए. “सुखदेव” ने बेहिचक उसे दोनों कुण्डल दे दिए. इसलिए सदा ही हमे दान करते रहना चाहिए. क्योकि दान देना भी एक प्रकार का धर्म ही होता है.

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