hindi ki kahaniya
भोजन मोजी जब रहे भूखे
moral stories in hindi, hindi ki kahaniya, ये कहानी एक ऐसे इंसान की है जो की एक पार्टी मैं जाकर भी भूके रह गए थे. आये देखते है की आखिर मैं हुआ क्या था. मेरा नाम मनोज कुमार है. हमारी कंपनी के मैनेजर देशपांडे यादव यों तो बहुत डरपोक और संकोची आदमी थे, मगर खाने के मामले में और खासकर दूसरे की जेब के पैसे खर्च कराकर खाने के मामले में न उन्हें पेट फटने का डर सताता था, न संकोच होता था. इसीलिए हम उन्हें भोजन मोजी कहते थे. जब भी हम लंच करने रेस्तराँ में जाते भोजन मोजी भी हमारे पीछे-पीछे आ पहुँचते और कई चीजों का ऑर्डर देकर हमारे पास बैठ जाते.
फिर हमसे पहले सभी चीजें चट करके मुँह साफ करते कहते, ‘‘मैं अभी आ रहा हूँ, पर लौटकर कभी न आते. इस तरह उनके भोजन के पैसे भी हमें चुकाने पड़ते. एक बार जब भोजन मोजी जी ने हम तीन साथियों को अपने घर भोजन का निमंत्रण दिया तो हमें आश्चर्य हुआ. हम अगली-पिछली सारी कसर पूरी करने का इरादा करके अगले दिन पहुँच गए भोजन मोजी जी के घर. उनके घर पर कीर्तन हो रहा था.
करीब तीन घंटे बाद जब कीर्तन समाप्त हुआ तो भोजन मोजी ने सबको प्रसाद बाँटा. उसके बाद एक-एक करके सभी लोग चले गए. हम तीनों इस इंतजार में बैठे रहे कि शायद मुहल्ले के लोगों के जाने के बाद भोजन मोजी जी हमें भोजन कराएँगे. मगर करीब डेढ़ घंटा और बीत जाने का बाद भोजन आता न दीखा,
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तो हमारे एक साथी ने पूछ ही लिया कि भोजन कब मिलेगा. उसकी बात सुनकर भोजन मोजी जी बोले, ‘‘भोजन कैसा भोजन ?’’ हमने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने ही हमें भोजन पर बुलाया था. भोजन मोजी बजाय शर्मिंदा होने के तुरंत बोले, ‘‘नहीं भाई, तुम लोगों से सुनने में भूल हो गई है. हमने तो आपको भजन-कीर्तन पर बुलाया था. हम बंगाली लोग भजन को भोजन बोलते हैं भाई. फिर थोड़ा ठहरकर वे बोले, ‘‘आज तो मैं आपको भोजन करा भी नहीं सकता, क्योंकि आज हमारे घर कीर्तन हुआ है सो घर में खाना नहीं बनेगा. सब उपवास रखेंगे. हाँ, अगर किसी को ज्यादा ही भूख लगेगी तो वह होटल में जाकर खा आएगा. हमने कहा तो चलिए हमारी खातिर आप ही उपवास तोड़ दीजिए.
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भोजन मोजी जी ने यह सलाह तुरंत मान ली. होटल में पहुँचकर लंबा-चौड़ा ऑर्डर दिया. अभी हम लोग आधा पेट भी नहीं भर पाए थे कि वह अपने हिस्से का तमाम भोजन चट करके उठ खड़े हुए और हमेशा की तरह, ‘‘मैं अभी आता हूँ, कहते हुए बहार की और जाने लग अपने साथ-साथ हमें उनके भोजन के भी पैसे चुकाने पड़े. बस उसी समय हम तीनों ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. अगले दिन हम तीनों भोजन मोजी जी से अलग-अलग मिले और उन्हें इतवार की दोपहर अपने-अपने घरों में खाने का निमंत्रण दे दिया. उन्होंने तीनों जगह खाना खाने की सहर्ष स्वीकृति दे दी. इतवार को सुबह-सवेरे वह अपने घर से निकल पड़े. चलने से पहले अपने लड़कों को हिदायत दी, ‘‘देखो, मैं आज प्रकाश, आदेश और राकेश के घर भोजन करने जा रहा हूँ. तुम ठीक चार बजे साइकिल लेकर राकेश के घर पहुँच जाना, क्योंकि ज्यादा खाने के कारण मैं चल नहीं सकूँगा.
भोजन मोजी जी प्रकाश के घर पहुँचे. उसने उन्हें बैठक में बिठाकर एक गिलास ठंडा पानी हाजिर किया. भोजन मोजी जी तो पिछले दिन से भूखे थे सो भूखे पेट में खाली पानी ने जाकर ऊधम मचाना शुरू कर दिया. भीतर रसोईघर से तवे पर कुछ तले जाने की आवाज आ रही थी. उसे सुन-सुनकर भोजन मोजी प्रसन्न हो रहे थे और इंतजार में थे कि कब वे सब पकवान उनके सामने आयें. पर भीतर कुछ बन रहा होता तब तो आता. भीतर तो प्रकाश की पत्नी खाली गर्म तवे पर पानी के छीटे मार रही थी. अचानक वह आवाज आनी बंद हो गई. भोजन मोजी जी सतर्क होकर बैठ गए. तभी प्रकाश की पत्नी ने आकर सूचना दी, ‘‘खाने का सब सामान कुत्ते ने जूठा कर दिया है. अब मैं बाजार से दूसरी सब्जियाँ वगैरह लेने जाती हूँ. यह सुनकर भोजन मोजी जी के तो होश ही उड़ गए. उन्हें तुरंत आदेश की याद आई.
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वह उसी समय उसके घर चल पड़े. सारे रास्ते वह प्रकाश और उसकी पत्नी को कोसते रहे. जैसे ही वह आदेश की गली में मुड़े वह उनसे टकरा गया. वह बोला, ‘‘सर, मुझे सुबह प्रकाश ने बताया कि आज आपकी दावत उसके घर में है सो मैंने कार्यक्रम बदल दिया. अब मैं कहीं जा रहा हूँ. आपको भोजन कराने का मौका आज तो मेरे हाथ से निकल गया मगर, कोई बात नहीं, फिर कभी सही. इतना कहकर वह तेजी से बस स्टॉप की तरफ दौड़ गया. बेचारे भोजन मोजी जी काफी देर तक भूखा पेट पकड़े आदेश पर लानत-मलामत भेजते रहे फिर कुछ हिम्मत बटोरकर मेरे घर के लिए चल पड़े. मैं तो उनके इंतजार में बैठा ही था. तपाक से उन्हें घर ले आया. ज्योंही वह आराम से बैठे, मैंने कहा, ‘‘सर, यह तो बुरा हुआ कि आज ही आदेश और प्रकाश ने भी आपको निमंत्रित किया.
अब मैं आपके पेट के साथ तो ज्यादती कर नहीं सकता इसलिए…’’अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मेरी पत्नी दो कप चाय ले आई. चाय पीकर मैं उन्हें छत पर ले आया ताकि हवा का आनंद लिया जा सके. छत पर पहुँचते ही भोजन मोजी जी ने मरी हुई आवाज में कहा, ‘‘नहीं, मैंने उनके यहाँ भोजन नहीं किया. मैंने फैसला किया था कि खाना मैं तुम्हारे ही घर खाऊँगा. तभी मेरी पत्नी छत पर आकर बोली, ‘‘देखिए मैं जरा अपनी माँ के घर तक जा रही हूँ शाम को देर से लौटूँगी, और वह फौरन घर की चाभियाँ मेरे पास रखकर चली गई.
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moral stories in hindi, hindi ki kahaniya, मैं ‘अरे सुनो तो…’’ चिल्लाता रहा पर उसने मुड़कर भी न देखा. इधर मैं भोजन मोजी जी का हाल देखकर अवाक् रह गया. वह बेहोश होकर छत पर लुढ़क चुके थे. शाम को उनका लड़का मेरे घर आया और भोजन मोजी जी को उसी हालत में साइकिल पर लादकर ले गया. वह पूरे रास्ते बड़बड़ाता गया, ‘‘कहा था एक साथ तीन-तीन घरों में दावत मत खाना. पर किसी की सुनें तब न. उसी दिन भोजन मोजी जी ने मुफ्तखोरी से तौबा कर ली. तो दोस्तों आपको ये कॉमेडी कहानी किसी लगी, हमे जरूर बताये. ताकि हम आप लोगो को ज्यादा से ज्यादा कॉमेडी स्टोरी शेयर कर सके.
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