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नजरिये की पहचान
एक समय की बात है जब एक ब्राह्मण अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल की और जा रहे थे की तभी उन्हें एक नदी दिखाई दी. और वो सब वहा पर स्नान करने के लिए रुक गए. तभी एक राहगीर वंहा से गुजरा तो ब्राह्मण को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रुक गया. वो ब्राह्मण से पूछने लगा, ब्राह्मण एक बात बताये कि यंहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी अभी इस जगह पर आया हूँ और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई विशेष जानकारी नहीं है.
इस पर ब्राह्मण ने उस व्यक्ति से कहा कि, भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा. पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम जिस जगह से आये वो वंहा के लोग कैसे है. इस पर उस आदमी ने कहा, उनके बारे में क्या कहूँ महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यंहा बसेरा करने के लिए आया हूँ. ब्राह्मण ने जवाब दिया बंधू, तुम्हे इस गाँव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे.
वह आदमी आगे बढ़ गया. थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और ब्राह्मण से प्रणाम करने के बाद कहता है, ब्राह्मण जी मैं इस गाँव में नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूँ लेकिन मुझे यंहा की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसे है और यंहा रहने वाले लोग कैसे है. ब्राह्मण ने इस पर फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहा कि, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वंहा रहने वाले लोग कैसे है.
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उस व्यक्ति ने ब्राह्मण से कहा, गुरूजी जिस जगह से मैं आया हूँ वंहा भी सभ्य सुलझे हुए और नेकदिल इन्सान रहते है मेरा वंहा से कंही और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूँ और यंहा की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था. इस पर ब्राह्मण ने उसे कहा बंधू, तुम्हे यंहा भी नेक दिल और भले इन्सान मिलेंगे. वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया. शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरू जी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग अलग जवाब दिए हमे कुछ भी समझ नहीं आया.
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इस पर मुस्कुराकर ब्राह्मण बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है, इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है. अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे. सब देखने के नजरिये पर निर्भर करता है. तो दोस्तों ये कहना एक दम से सत्य है की जैसी हमारी सोच की परवर्ती होगी, हमे वैसा ही सब कुछ दिखाई देगा. इसलिए हमे सदा ही अपनी सोच को सही दिशा मैं रखना चाहिए.
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