स्वार्थ की हिंदी कहानी, hindi bal kahani

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स्वार्थ की हिंदी कहानी

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बहुत पुरानी बात है, महादेव पर्वत के पास एक बहुत ही बूढ़ा साप रहा करता था. उसका नाम सर्पविष था. बुढापे की मार से सर्पविष का शरीर कमज़ोर पड गया था. उसके विषदंत हिलने लगे थे और फुफकारते हुए दम फूल जाता था. सर्पविष इसी उधेडबुन में लगा रहता कि किस प्रकार आराम से भोजन का स्थाई प्रबंध किया जाए. एक दिन उसे एक उपाय सूझा और उसे आजमाने के लिए वह एक सरोवर के किनारे जा पहुंचा. सरोवर में केकड़े की भरमार थी. वहां उन्हीं का राज था.

सर्पविष वहां इधर उधर घूमने लगा. तभी उसे एक पत्थर पर केकड़े का राजा बैठा नजर आया. सर्पविष ने उसे नमस्कार किया महाराज की जय हो. केकड़े राज चौंका तुम, तुम तो हमारे बैरी हो. मेरी जय का नारा क्यों लगा रहे हो. सर्पविष विनम्र स्वर में बोला राजन, वे पुरानी बातें हैं. अब तो मैं आप केकड़े की सेवा करके पापों को धोना चाहता हूं. श्राप से मुक्ति चाहता हूं. ऐसा ही मेरे नागगुरु का आदेश हैं.

केकड़ेराज ने पूछा उन्होंने ऐसा विचित्र आदेश क्यों दिया. सर्पविष ने मनगढंत कहानी सुनाई राजन्, एक दिन मैं एक उद्यान में घूम रहा था. वहां कुछ मानव बच्चे खेल रहे थे. ग़लती से एक बच्चे का पैर मुझ पर पड गया और बचाव स्वाभववश मैंने उसे काटा और वह बच्चा मर गया. मुझे सपने में भगवान श्री कृष्ण नजर आए और शाप दिया कि मैं वर्ष समाप्त होते ही पत्थर का हो जाऊंगा. मेरे गुरुदेव ने कहा कि बालक की मृत्यु का कारण बन मैंने कृष्ण जी को रुष्ट कर दिया हैं,

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क्योंकि बालक कॄष्ण का ही रुप होते हैं. बहुत गिडगिडाने पर गुरु जी ने शाप मुक्ति का उपाय बताया. उपाय यह हैं कि मैं वर्ष के अंत तक केकड़े को पीठ पर बैठाकर सैर कराऊं. सर्पविष की बात सुनकर केकड़ेराज चकित रह गया. सांप की पीठ पर सवारी करने का आज तक किस केकड़े को श्रेय प्राप्त हुआ. उसने सोचा कि यह तो एक अनोखा काम होगा. केकड़ेराज सरोवर में कूद गया और सारे केकड़े को इकट्ठा कर सर्पविष की बात सुनाई. सभी केकड़े भौंचक्के रह गए.

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एक बूढा केकड़े बोला केकड़े एक सर्प की सवारे करें. यह एक अदभुत बात होगी. हम लोग संसार में सबसे श्रेष्ठ केकड़े माने जाएंगे. एक सांप की पीठ पर बैठकर सैर करने के लालच ने सभी केकड़े की अक्ल पर पर्दा डाल दिया था. सभी ने हां में हां मिलाई. केकड़ेराज ने बाहर आकर सर्पविष से कहा सर्प, हम तुम्हारी सहायता करने के लिए तैयार हैं. बस फिर क्या था. आठ दस केकड़े सर्पविष की पीठ पर सवार हो गए और निकली सवारी. सबसे आगे राजा बैठा था.

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सर्पविष ने इधर उधर सैर कराकर उन्हे सरोवर तट पर उतार दिया. केकड़े सर्पविष के कहने पर उसके सिर पर से होते हुए आगे उतरे. सर्पविष सबसे पीछे वाले केकड़े को गप्प खा गया. अब तो रोज यही क्रम चलने लगा. रोज सर्पविष की पीठ पर केकड़े की सवारी निकलती और सबसे पीछे उतरने वाले को वह खा जाता. एक दिन एक दूसरे सर्प ने सर्पविष को केकड़े को ढोते देख लिया. बाद में उसने सर्पविष को बहुत धिक्कारा अरे, क्यों सर्प जाति की नाक कटवा रहा हैं. सर्पविष ने उत्तर दिया समय पडने पर नीति से काम लेना पडता हैं. अच्छे बुरे का मेरे सामने सवाल नहीं हैं. कहते हैं कि मुसीबत के समय गधे को भी बाप बनाना पडे तो बनाओ.

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सर्पविष के दिन मजे से कटने लगे. वह पीछे वाले वाले केकड़े को इस सफाई से खा जाता कि किसी को पता न लगता. केकड़े अपनी गिनती करना तो जानते नहीं थे, जो गिनती द्वारा माजरा समझ लेते. एक दिन केकड़ेराज बोला मुझे ऐसा लग र्हा हैं कि सरोवर में केकड़े पहले से कम हो गए हैं. पता नहीं क्या बात हैं. सर्पविष ने कहा हे राजन, सर्प की सवारी करने वाले महान केकड़े राजा के रुप में आपकी ख्याति दूर दूर तक पहुंच रही हैं. यहां के बहुत से केकड़े आपका यश फैलाने दूसरे सरोवरों, तलों व झीलों में जा रहे हैं. केकड़ेराज की गर्व से छाती फूल गई.

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अब उसे सरोवर में केकड़े के कम होने का भी ग़म नहीं था. जितने केकड़े कम होते जाते, वह यह सोचकर उतना ही प्रसन्न होता कि सारे संसार में उसका ही झंडा हैं. आखिर वह दिन भी आया, जब सारे केकड़े समाप्त हो गए. केवल केकड़ेराज अकेला रह गया. उसने स्वयं को अकेले सर्पविष की पीठ पर बैठा पाया तो उसने सर्पविष से पूछा लगता हैं सरोवर में मैं अकेला रह गया हूं. मैं अकेला कैसे रहूंगा. सर्पविष मुस्कुराया राजन, आप चिन्ता न करें. मैं आपका अकेलापन भी दूर कर दूंगा. ऐसा कहते हुए सर्पविष ने केकड़ेराज को भी गप्प से निगल लिया और वहीं भेजा जहां सरोवर के सारे केकड़े पहुंचा दिए गए थे. इस कहानी की सिख यही है की हमे कभी भी किसी की बातो मैं आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए. क्योकि कभी कभी वो खुद की मौत का कारण भी बन सकती है.

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