कवि सम्मान की दास्तान, Moral stories in hindi

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Moral stories in hindi

इस कहानी कवि के सम्मान की दास्तान (Moral stories in hindi) में यह बताया गया है की आपको जो करना है उसे सही समय पर ही करना चाहिए, और सही तरिके से करना है आपको यह कहानी जरूर पसंद आएगी.

कवि के सम्मान की दास्तान : Moral stories in hindi

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Moral stories in hindi 

ये कहानी है उस कवि की जिसने अपने सम्मान के आगे बहुत कुछ किया था लेकिन अपना सम्मान नहीं खोया. वो भी कैसे हम आपको बताते है. कवि सूरजभान जी बारहट देवधर राज्य के सरदार थे. उस वक्त देवधर की राजगद्दी पर राजा सूरजमल जी आरूढ़ थे. एक दिन कवि सूरजभान जी राजा से मिलने आये पर सयोंग की बात कि उस वक्त राजा सूरजमल जी के पास बादशाह त्रिकोणीय के प्रतिनिधि जीतपाल जी आये हुए थे और किन्ही जरुरी बिंदुओं पर दोनों के मध्य वार्तलाप हो रहा था. राजा ने पहले ही अपने पहरेदारों को कह दिया था कि जब तक मैं बादशाह के प्रतिनिधि के साथ बातचीत कर रहा हूँ.

 

तब तक किसी को मेरे पास मत आने देना बेशक वह कोई सरदार ही क्यों न हो. जब कवि सूरजभान जी राजा के उस कक्ष की ओर जाने लगे तो पहरेदारों ने उनको रोका और बताया कि उधर जाने का हुक्म नहीं है इस वक्त राजा बादशाह के प्रतिनिधि से बात कर रहे है सो वे किसी की भी नहीं सुनेगे. अब ये बात स्वाभिमानी कवि को कैसे बर्दास्त होती. उनके हृदय में इस बात ने आघात किया था. और वे सोचने लगे क्या राजा को अब बादशाह के प्रतिनिधि के आगे किसी इज्जतदार को इज्जत देते हुए भी शर्म आ रही है क्या. ये तो शर्म की बात है . गुणीजनों का आदर करने की देवधर राज्य के राजाओं की रीत तो आदिकाल से ही चली आ रही है.

 

जिसे आज खंडित कैसे होने दिया जा सकता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि बादशाह की देखा देखि राजा सूरजमल जी भी लोगों को छोटा बड़ा समझने लगे हों. और वैसे भी कवि तो राजाओं को सही राह दिखाते है, गलत राह पर चलते राजा को सही दिशा दिखाना वैसे भी मेरा कर्तव्य है इसलिए इस वक्त मुझे जरुर जाना चाहिए. और ये सब सोच कवि महाराज पहरेदारों को हड़काते हुए राजा के पास जा पहुंचे, पर हमेशा की तरह राजा ने वापस खड़े होकर उनका अभिवादन नहीं स्वीकारा. ये देख कवि सूरजभान जी के हृदय को आघात पहुंचा था, और उन्होंने उसी वक्त बादशाह के प्रतिनिधि के आगे ही राजा को धिक्कारते हुए एक दोहा कह डाला गया.

 

कद्रदान जगतसिंह जी तो चल बसे और अब उनका बेटा सूरजमल है जो वंश का काला मुंह करने लायक जैसा रह गया है. ऐसे शब्द और वो भी बादशाह के प्रतिनिधि के आगे. राजा सूरजमल जी ने तो आगबबूला हो अपना आपा ही खो दिया. और उन्होंने ने एक डंडा उठाया और सर पर वार किया, कवि जी वही बैठ गए, और समझ गए की यहां पर आना उनकी भूल थी, उसके बाद वह कभी बिन बुलाये अंदर नहीं गए थे,

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