माँ तुलसी की कहानी, tulsi vivah story in hindi

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Tulsi vivah story in hindi

माँ तुलसी की कहानी

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tulsi ki kahani

आज मैं जो कहानी आपको बताने जा रहा हु, वो एक बहुत ही पुरानी कहानी है, ऐसा मना जाता है की पौराणिक काल के समय मैं एक दानव कुल मैं एक कन्या का जन्म हुआ था, जो की भगवान शिव की पराम् भक्त थी. जिसका नाम था सुलेखा. सुलेखा बचपन से ही भगवान शिव जी की परम भक्त थी. बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज अगाध से हो गया,

अगाध समुद्र से उत्पन्न हुआ था. सुलेखा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब अगाध युद्ध पर जाने लगे तो सुलेखा ने कहा स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं. अगाध तो युद्ध में चले गए और सुलेखा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई.

उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी अगाध को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान शिव जी के पास गए. सब ने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि सुलेखा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं. भगवान ने अगाध का ही रूप रखा और सुलेखा के महल में पहुंच गए जैसे ही सुलेखा ने अपने पति को देखा.

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वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए. जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने अगाध को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया. उनका सिर सुलेखा के महल में गिरा जब सुलेखा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है. उन्होंने पूछा आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया. तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके. सुलेखा सारी बात समझ गई. उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ. भगवान तुंरत पत्थर के हो गए.

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सभी देवता हाहाकार करने लगे. पार्वती जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब सुलेखा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई. उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान शिव जी ने कहा आज से इनका नाम तुलसी है. मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा. तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. तो दोस्तों इस तरह से माँ तुलसी का जन्म हुआ और वो हिन्दू धर्म मैं बड़ी ही मान्यता की साथ पूजी जाने लगी.

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