दो पंडित की हिंदी कहानी, Best Story in hindi

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हमे यह नहीं सोचना चाहिए की हमारा फायदा किस्मे में है हमे तो यह सोचना चाहिए की भगवान् की भक्ति में हमे बहुत कुछ मिल सकता है इसलिए भक्ति भाव को अपनाये लालच को नहीं यह दो पंडित की हिंदी कहानी (Best Story in hindi) आपको पसंद आएगी,

दो पंडित की हिंदी कहानी : Best Story in hindi

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Best Story in hindi

दो  पंडित आपस में लड़ रहे थे और यह कह रहे थे कि मैं सबसे बड़ा पंडित हूं दूसरा बोला मैं सबसे बड़ा पंडित हूं उस गांव में एक ही मंदिर था लेकिन वह दोनों पंडित यही सोचा करते थे कि मैं इस मंदिर में रहूंगा लेकिन कोई भी इस बात का फैसला नहीं कर पा रहा था कि कौन सा पंडित इस मंदिर में रहेगा

 

1 दिन सभी गांव वाले एकत्रित हो गए और कहने लगे कि हमें यह निर्णय लेना चाहिए कि इस मंदिर में कौन सा पंडित रहेगा दोनों पंडित फिर आपस में लड़ने लगे और कहने लगे कि मैं इस मंदिर में रहूंगा दूसरा बोला मैं ही इस मंदिर में रहूंगा तभी सामने से एक साधु महाराज जी आ रहे थे उनकी नजर पड़ी कि बहुत सारी भीड़ एक जगह खड़ी हुई खड़ी है

 

साधु महाराज जी नजदीक आए और कहने लगे कि आप लोग यहां पर क्या कर रहे हैं फिर साधु महाराज जी को सभी लोगों ने बात बताई इस मंदिर में दोनों पंडित इस बात को लेकर लड़ रहे हैं कि मैं मंदिर में बैठूंगा और आज इसी बात का फैसला लेने के लिए सभी लोग यहां पर इकट्ठा हुए हैं साधु महाराज जी वहां पर खड़े हुए सब कुछ देख रहे थे सभी लोग फैसला लेने के लिए तैयार थे लेकिन फैसला कैसे लिया जाए और कोई भी नहीं जानता था

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फिर सभी लोग साधु महाराज से कहने लगे कि आप ही कोई फैसला कीजिए जिसके कारण हमारी समस्या खत्म हो सके साधु महाराज जी ने दोनों पंडित को पास में बुलाया और कहा कि तुम्हें एक परीक्षा देनी होगी उस परीक्षा में जो पास होगा वही मंदिर में बैठेगा साधु महाराज जी ने कहा कि वह जो सामने आपको पेड़ दिखाई दे रहा है उस पेड़ के पत्ते लेकर आओ

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पहला पंडित पत्ते लेने के लिए गया जब वह पत्ते लेने जा रहा था तभी उसे कुछ पैसे पड़े हुए नजर आए उसने वह पैसे उठाया और अपनी जेब में रख लिए और पत्ते लेकर वापस आ गया फिर उसके बाद दूसरा पंडित पत्ते लेने के लिए गया उसे भी रास्ते में कुछ पैसे पड़े हुए मिले उसने भी अपनी जेब में वह पैसे रखे पत्ते लेकर वापस आ गया साधु महाराज जी ने पहले पंडित को अपने पास बुलाया और कहा कि जो भी तुम्हें कुछ मिला है मेरे हाथ पर रख दो पंडित

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पंडित ने पत्तो के अलावा महाराज जी को कुछ भी नहीं दिया दूसरे पंडित को बुलाया गया और उससे भी वही सवाल किया गया उसने भी पत्ते के सिवाय और कुछ भी नहीं दिया महाराज जी ने सभी लोगों से कहा कि मंदिर में पूजा करने के लिए पंडित का होना आवश्यक नहीं है जबकि इंसान के अंदर वह भावनाएं होनी चाहिए जो हमें भक्ति मार्ग पर ले जाती हैं क्योंकि दोनों ही पंडित लालची थे वह सिर्फ मंदिर में इसलिए बैठना चाहते थे जिससे कि धन कमाया जाए ना कि किसी को भक्ति भाव समझाया जाए इसलिए सभी लोगों ने यह फैसला किया कि मंदिर में कोई पंडित नहीं रहेगा जिसको पूजा करनी है वह अपने आप ही आएगा और अपनी भक्ति भाव से पूजा करेगा.

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