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महंत और भक्त की कहानी
ये बात एक गांव के महंत की है. जिनका नाम था रामेश्वर. उन्होंने जमुना नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया हुआ था. महंत जी बहुत ही ज्ञानी थे. उनके आश्रम में दूर दूर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे. नदी के दूसरे किनारे पर शीला नाम की एक ग्वालिन अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी. शीला सारा दिन अपनी गायों की देख भाल करती थी.
सुबह जल्दी उठकर अपनी गायों को नहला कर दूध निकालती, फिर अपने पिताजी के लिए खाना बनाती. महंत जी के आश्रम में भी दूध शीला के यहाँ से ही आता था. एक बार महंत जी को किसी काम से शहर जाना था. उन्होंने शीला से कहा कि उन्हें शहर जाना है, इसलिए अगले दिन दूध उन्हें जल्दी चाहिए. शीला अगले दिन जल्दी आने का वादा करके चली गयी. अगले दिन शीला ने सुबह जल्दी उठकर अपना सारा काम समाप्त किया और जल्दी से दूध उठाकर आश्रम की तरफ निकल पड़ी. नदी किनारे उसने आकर देखा कि कोई मल्लाह अभी तक आया नहीं था. शीला बगैर नाव के नदी कैसे पार करती .
शीला को आश्रम तक पहुँचने में देर हो गयी. आश्रम में महंत जी जाने को तैयार खड़े थे. उन्हें सिर्फ शीला का इन्तजार था. शीला को देखते ही उन्होंने शीला को डाँटा और देरी से आने का कारण पूछा. शीला ने भी बड़ी मासूमियत से महंत जी से कह दिया कि नदी पर कोई नाव वाला नहीं था, वह नदी कैसे पार करती . इसलिए देर हो गयी. महंत जी गुस्से में तो थे ही, उन्हें लगा कि शीला बहाने बना रही है. लोग तो जीवन सागर को भगवान का नाम लेकर पार कर जाते हैं,
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तुम एक छोटी सी नदी पार नहीं कर सकती . महंत जी की बातों का शीला पर बहुत गहरा असर हुआ. दूसरे दिन भी जब शीला दूध लेकर आश्रम जाने निकली तो नदी के किनारे नाव वाला नहीं था. शीला ने नाव वाला का इंतजार नहीं किया. उसने भगवान को याद किया और पानी की सतह पर चलकर आसानी से नदी पार कर ली. इतनी जल्दी शीला को आश्रम में देख कर महंत जी हैरान रह गये, उन्हें पता था कि कोई नाव वाला इतनी जल्दी नहीं आता है. उन्होंने शीला से पूछा कि तुमने आज नदी कैसे पार की .
शीला ने बड़ी सरलता से कहा महंत जी आपके बताये हुए तरीके से. मैंने भगवान् का नाम लिया और पानी पर चलकर नदी पार कर ली. महंत जी को शीला की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उसने शीला से फिर पानी पर चलने के लिए कहा. शीला नदी के किनारे गयी और उसने भगवान का नाम जपते जपते बड़ी आसानी से नदी पार कर ली. महंत जी हैरान रह गये. उन्होंने भी शीला की तरह नदी पार करनी चाही. पर नदी में उतरते वक्त उनका ध्यान अपनी धोती को गीली होने से बचाने में लगा था. वह पानी पर नहीं चल पाये और धड़ाम से पानी में गिर गये.
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महंत जी को गिरते देख शीला ने हँसते हुए कहा, आपने तो भगवान का नाम लिया ही नहीं, आपका सारा ध्यान अपनी नयी धोती को बचाने में लगा हुआ था. महंत जी को अपनी गलती का अहसास हो गया. उन्हें अपने ज्ञान पर बड़ा अभिमान था.पर अब उन्होंने जान लिया था कि भगवान को पाने के लिए किसी भी ज्ञान की जरूरत नहीं होती. उसे तो पाने के लिए सिर्फ सच्चे मन से याद करने की जरूरत है. इसलिए हमे सदा ही अपने भगवन को सच्चे मन से याद करना चाहिए, क्योकि जो लोग सच्चे मन से भगवन को याद करते है , भगवन उनकी सहायता जरूर करते है.
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