सुलेखा की कहानी, short moral stories in hindi

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सुलेखा की कहानी 

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दोस्तों ये कहानी मैंने अपनी दादी से सुनी थी , जो की मुझे बहुत ही अच्छी लगी, इसलिए मैं आप लोगो को भी इस कहानी के बारे मैं बताने जा रहा हु. ये बात एक ऐसे नगर की है जिसका नाम पाटलिपुत्र था. इस शहर मैं एक सुनार रहता था जिसके सात बेटे थे और एक बेटी थी. सुनार बहुत ही आमिर हुआ करता था. लेकिन उसकी बेटी के साथ जो घटना घटी वो किसी के भी साथ न घटे.

 

मैं अब आप लोगो को इस कहानी के बारे मैं बताता हु. बहुत साल पहले कि बात है, सुनार की बेटी का नाम था सुलेखा. जैसा नाम वैसा ही रूप, सुनहरे बाल, बोली इतनी मीठी की सुनने वाला सुनता ही रहे. अपने माता पिता और भाइयों की लाडली थी सुलेखा. धीरे धीरे वक़्त बीतने लगा , समय पंख लगा कर उड़ा जा रहा था. सुलेखा अब 13 वर्ष कि हो रही थी. सातो भाइयों का विवाह हो चूका था. सातो भाई अपनी अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग घरो मे रहने लगे थे. सुलेखा के लिए भाइयों के दुलार और प्यार मे कोई कमी नहीं आई थी.

भाइयों का यह प्यार सुलेखा के लिए मुसीबत का कारण बन जाएगा यह उसने कभी सोचा न था. दरअसल भाभियों को भाइयों का सुलेखा के प्रति स्नेह यानी द्वेष का कारण बन गयी थी. भाभियाँ सोचती किसी तरह सुलेखा नाम का काँटा उनके जिंदगी से निकल जाए. और एक दिन उन्हें यह मौक़ा मिल भी गया. एक दिन सुलेखा अपनी भाभियों के साथ जंगल मे मिट्टी खोदने गयी. जिस जगह से सुलेखा मिट्टी खोदती वहां से हीरे मोती, सोना, चांदी निकलता. भाभियों ने जब यह सब देखा तो सुलेखा से बोली बाईसाब थे

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यानी कि इधर आओ , आप यहाँ मिट्टी खोदो. सुलेखा उनके मन मे आये लालच को समझ ना सकी और उनकी बतायी जगह से मिट्टी खोदने लगी. जहाँ सुलेखा पहले मिट्टी खोद रही थी,जब उन्होंने उस जगह कि मिट्टी को जाकर छुआ तो, उस मिट्टी से निकले हीरे मोती , सोना चांदी फिर मिट्टी मे परिवर्तित हो गए. हद तो तब हो गयी जहाँ पहले वे मिट्टी खोद रही थी, वो जगह सुलेखा के हाथ का स्पर्श पाते ही फिर से हीरे, मोती, सोना चांदी उगलने लगी. आज तो सुलेखा का हिसाब कर ही देना चाहिए भाभियों ने आपस मे कहा. और अपनी योजना के मुताबिक़ उसे जंगल मे छोड़कर चली आई.

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घर आकर वे सब छाती पीट पीटकर रोने लगी और कहने लगी हाय हमारी सोना को तो जंगली जानवर उठा कर ले गया. भाइयों ने कहा कि हमें उस जगह पर ले चलो जहाँ यह घटना हुई है. यह सुनकर वे सब घबरा गयी बोली आपको क्या लगता है, हमने पीछा ना किया होगा, अरे बहुत बड़ा जंगली जानवर था और वो हमारी सोना को जंगल के भीतर बहुत गहरे ले गया है, अब कुछ फायदा नहीं वहां जाने का. माँ बाप बेटी के गम मे बेसुध हो गए थे. भाइयों को लगा उनके शरीर से आत्मा निकल गयी है.

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इधर जंगल मे जब सुलेखा ने देखा की उसकी भाभियों का कही कोई अता पता नहीं है तो वो बिलख बिलख कर रोने लगी. सूरज ढलने को था , धीरे धीरे शाम गहरा रही थी. ‘अलख निरंजन ‘ की आवाज़ लगता हुआ एक साधू बाबा निकला. क्या हुआ बेटी तुम क्यों रो रही हो बाबा ने पूछा. फिर सुलेखा ने अपनी आप बीती उस बाबा को बताई. साधू ने जब टोकरी पर नज़र डाली तो उसकी आँखे चुंधिया गयी. वो बाबा साधू के रूप मे एक पाखंडी था. वो सुलेखा को बहला फुसलाकर अपने घर ले आया. उसने सुलेखा के सुनहरे बालो को कटवा दिया और लडको जैसे कपडे पहना दिए. सुलेखा को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी.

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साधू रोज़ नगर जाता और भिक्षा मांग कर लाता, खुद भी खाता सुलेखा को भी देता. सुलेखा हर वक़्त उस कैद से निकल जाने का रास्ता खोजा करती. एक दिन साधू बीमार पड़ गया. वो ऐसी हालत मे नहीं था कि भिक्षा मांगने जा सके. मैं तो जा नहीं सकता अब भोजन की व्यवस्था किस तरह से होगी उसने कहा. आप चिंता मत करो मैं चली जाती हूँ भिक्षा मांगने. ऐसा कहकर सुलेखा चली गयी. रास्ते मे एक राहगीर से नगर का रास्ता पूछा और उसके बताये रास्ते पर चलते चलते नगर पहुच गयी. सुलेखा की यादाश्त बड़ी तेज़ थी, उसे अपने सभी भाइयों के घर का रास्ता पता था. वो सबसे पहले सबसे बड़े भाई के घर गयी और वहां जाकर उसने यह पंक्तिया गायी. सात भाई बीच सुलेखा बेटी, मोतीडा बीनता, जोगीड़ा ने पकड़ा,माई माई भिक्षा दे.

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भाई ने जब यह आवाज़ सुनी तो तुरंत पहचान लिया अरे!, ये तो मेरी लाडली बहन सोना कि आवाज़ है. भाभी ने बहुत रोकने की कोशिश की पर अब भाई कहाँ रुकने वाला था. उसने आवाज़ लगा कर अपनी बहन को ऊपर बुला लिया. दोनों भाई बहन गले लगकर बहुत रोये. बाकी भाइयों को और माता पिता को सुलेखा के मिलने का समाचार मिला वो दौड़े दौड़े आये. जब भाइयों को अपनी पत्नियों कि असलियत पता चली तो सबने अपनी पत्नियों को छोड़ने का फैसला कर लिया.

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लेकिन सुलेखा ने अपने भाइयों को बहुत समझाया तो वो सब कहने लगे कि एक शर्त पर अपनी पत्नियों को माफ़ करेंगे कि उन सभी को सुलेखा के पैरो मे गिरकर क्षमा मांगनी पड़ेगी. सभी ने सुलेखा से माफ़ी मांगी.एक बार फिर वो सब ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे. तो दोस्तों आपको ये मेरी दादी द्वारा सुनाई गयी कहानी कैसी लगी. कैसे सुलेखा ने अपनी जिंदगी को फिर से ठीक किया और ख़ुशी ख़ुशी अपने पति के साथ फिर से रहने लग गयी. ये कहनी हमे बहुत ही बड़ी सीखे देती है, की कभी भी देखि हुई चीज़ो पर भी एक दम से विश्वास नहीं करना चाहिए.

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