राजा की बात हिंदी कहानी, kahani in hindi

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राजा की बात हिंदी कहानी :- kahani in hindi

kahani in hindi, एक नगर में एक साधु रहता था साधु बहुत ही गरीब था और वह अपना बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहा था साधु अपना गुजारा करने के लिए दूसरों के दरवाजे पर भीख मांगता और चला जाता और उसकी हालत इतनी खराब थी कि कभी-कभी उसे भीख में कुछ भी नहीं मिलता था.

 

एक दिन यह बात राजा को उसके मंत्री ने बताया कि एक हमारे नगर में एक साधु रहते हैं जो बहुत ही गरीब हैं और उनका गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा है इस पर राजा ने कहा कि उन्हें कुछ धन देने के लिए जाओ, राजा की आज्ञा लेकर मंत्री साधु महाराज के पास पहुंचे कि यह महाराज ने धन दिया है आप अपनी सुविधाएं इनसे खरीद लीजिए तो इस प्रकार साधु ने मना कर दिया कि मुझे यह धन नहीं चाहिए

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मैं अपने जीवन से बहुत खुश हूं और मुझे किसी बात की चिंता नहीं है और इस प्रकार मंत्री वहां से चला गया मंत्री ने यह बात राजा को बताई राजा ने कहा कि उनकी गरीबी देखकर ही मैंने उन्हें धन दिया था तो मैं एक बार फिर जाओ और यह धन ले जाओ और कहो कि राजा ने ऐसा कहा है इस प्रकार मंत्री फिर दोबारा उस साधू के पास धन लेकर गए और

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साधु ने फिर मना कर दिया कि मैंने आपसे पहले ही कहा है कि मुझे धन की कोई आवश्यकता नहीं है मंत्री ने यह बात राजा को बताई और राजा ने कहा बड़े आश्चर्य की बात है कि उन्हें धन की आवश्यकता नहीं है लेकिन उनकी गरीबी तो इतनी है कि उनके पास खाने को कुछ भी नहीं है

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फिर राजा ही कहने लगे कि मैं लेकर उनके पास जाता हूं जब राजा साधू के पास पहुंचा और यह कहा कि यह लीजिए धन और अपनी सुविधाएं इन से खरीद लीजिए तो साधु महाराज ने कहा कि मेरे पास तो कपड़े भी नहीं और आप धन लेकर आएं मुझे धन का कोई लोभ नहीं है राजा ने यह बात सुनी और सोचा कि यह मेरी बहुत ही बड़ी भूल है कि मैं  साधु महाराज के पास धन लेकर आए हो जबकि उन्हें धन कि नहीं वस्त्र की आवश्यकता है और इस प्रकार राजा ने अपनी गलती साधु महाराज जी से मांगी और कहा कि

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kahani in hindi, Hindi kahaniyan, मुझे माफ कर दीजिए मैं नहीं जानता था कि आपको धन की आवश्यकता नहीं है आपको वस्त्रों की आवश्यकता है इस प्रकार साधु ने कहा कि हम लोगों को ही जितनी जरूरत होती है हमें उतना ही स्वीकार करना चाहिए से ज्यादा स्वीकार करना हमारे हित में नहीं है और फिर राजा ने क्षमा मांगी और वहां से चले गए.

 

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राजा अपने महल में बैठे हुए सोच रहे थे. क्योकि वह कुछ भी पढ़ नहीं सकते थे. वह मंत्री को अपने पास बुलाते है. उनसे कहते है. हमे अनपढ़ नहीं रहना है. इसलिए मुझे लगता है. हमे पढ़ना आना चाहिए. मंत्री ने पूरी बात समझ ली थी. उसके बाद मंत्री कहते है आप चिंता न करे. में जल्दी ही सबसे अच्छे गुरु को खोजकर लाता हु. वह आपके लिए सही मार्गदर्शन कर पायंगे. दो दिन बाद मंत्री एक गुरु के साथ आते है.

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वह गुरु बहुत ज्ञानी थे. क्योकि उन्हें बहुत ज्ञान था. राजा ने मंत्री से कहा की यह सब कुछ हमे सीखा सकते है. मंत्री कहता है की इनसे अधिक ज्ञानी कोई भी नहीं है. गुरु के रहने का इंतज़ाम किया गया था. क्योकि राजा नहीं चाहते थे. गुरु को अधिक दूर से आना पड़े. अगले दिन से राजा उनसे पढ़ने लगते है. लेकिन अभी तक राजा को ज्ञान नहीं मिल रहा था. वह गुरु पर शक नहीं कर सकते थे. क्योकि वह बहुत अधिक ज्ञानी थे. लेकिन गुरु से पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. बात कुछ भी समझ नहीं आ रही थी.

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उसके बाद राजा अपनी रानी से इस बारे में बात करते है. रानी कहती है. मुझे इसका ज्ञान नहीं है. आप गुरु से ही पूछ सकते है. अगले दिन राजा ने बहुत सोचकर गुरु से बात की और कहा की आप मुझे अच्छे से ज्ञान दे रहे है. लेकिन मुझे कुछ भी नहीं आ रहा है. गुरु कहते है की में इस बारे में जानता हु. में आपसे कहना भी चाहता था. लेकिन कह नहीं पाया था. राजा कहते है की आप मुझसे कह सकते है. गुरु कहते है. बात बहुत अधिक छोटी है. जब भी आप ज्ञान प्राप्त करते है. मुझे नीचे बैठा देते है. आप कुर्सी पर बैठ जाते है.

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अब राजा समझ गए थे. वह अपने अभिमान की वजह से ज्ञान नहीं ले पाए है. उस दिन के बाद राजा गुरु को कुर्सी पर बैठा देते है. उसके बाद वह ज्ञान लेने के लिए नीचे बैठ जाते है. अब राजा को ज्ञान मिलने लगा था. जब तक हम अपने झूठे अभिमान को नहीं छोड़ते है. तब तक कुछ नहीं होता है. इसलिए हमे सरल बनना चाहिए. अगर आपको यह दोनों राजा की कहानी, kahani in hindi, Hindi kahaniyan पसंद आयी है. शेयर जरूर करे.

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